शनिवार, 1 मार्च 2014

सार्विक संपर्क का उसूल

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने द्वंद्ववाद और संकलनवाद के बीच अंतर को समझने की कोशिश की थी, इस बार हम द्वंद्ववाद का व्यवस्थित निरूपण शुरू करते हुए इसके बुनियादी उसूलो के अंतर्गत सार्विक संपर्क के उसूल पर चर्चा करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



अब हम द्वंद्ववाद के व्यवस्थित विवेचन ( systematic deliberation ) और सटीक निरूपण ( accurate representation ) की ओर आगे बढ़ते हैं। सार्विक ( universal ) संबंधों के एक विज्ञान के रूप में द्वंद्वंवाद, गति और विकास के सामान्य नियमों का विज्ञान है। यह सार्विक संबंध के उसूल और, गति तथा विकास के उसूल को घनिष्ठता के साथ मिलाकर विचार करता है, क्योंकि भौतिक जगत में संबंध का मतलब है अंतर्क्रिया और अंतर्क्रिया ही गति और विकास की रचना करती है। हम यहां इन्हीं सार्विक संबंधों के उसूलों और गति एवं विकास के नियमों को थोड़ा सा विस्तार और व्यवस्थित रूप से समझने की कोशिश करेंगे। शुरुआत करेंगे कुछ बुनियादी उसूलों से।

द्वंद्ववाद के बुनियादी उसूल
सार्विक संपर्क का उसूल
संपर्क और अंतर्क्रिया

घटनाओं के बीच सार्विक संपर्क ( universal contact ) भौतिक जगत की सर्वाधिक सामान्य नियमितता ( regularity ) है। इसका आधार यह है कि विश्व की सारी वस्तुओं, प्रक्रियाओं तथा घटनाओं में एक सर्वनिष्ठ गुण ( common property ) है, वह है उनकी भौतिक प्रकृति। यहां सार्विक संपर्क का तात्पर्य यह है कि किसी भी वस्तु या घटना की उत्पत्ति, परिवर्तन, विकास तथा गुणात्मकतः नई अवस्था में रूपांतरण ( transformation ) अकेले अलग-थलग होना असंभव है। ऐसा केवल दूसरी वस्तुओं, घटनाओं तथा भौतिक प्रणालियों के साथ अंतर्संबंध ( interrelation ) तथा अंतर्निर्भरता ( interdependence ) में ही हो सकता है। कोई भी एक वस्तु या प्रणाली ( object or system ), संबंधों के एक बहु-शाखीय जाल ( multi-branched network ) द्वारा अन्य वस्तुओं या प्रणालियों के साथ जुड़ी है और इनमें से कुछ में परिवर्तन ( change ) होने पर अन्य में भी निश्चित ही परिवर्तन होते हैं

सार्विक संपर्क की संकल्पना ( concept ) में संबंधों के समस्त प्रकार और रूप शामिल हैं। अंतर्क्रिया ( interaction ) उस संपर्क का एक सार्विक लक्षण ( characteristic ) है। अंतर्क्रिया का अर्थ वे सारे प्रकार, विधियां तथा रूप हैं, जिनके द्वारा वस्तुएं और प्रक्रियाएं एक दूसरी को प्रभावित करती हैं। जब वस्तुएं अंतर्क्रिया करती हैं, इसका अवश्यंभावी फल उनका पारस्परिक परिवर्तन तथा गति ( motion ) होता है। वास्तविक वस्तुओं के बीच अनगिनत अंतर्क्रियाओं का जाल ही अपनी समग्रता ( totality ) में, विकास की विश्व प्रक्रिया का आधार होता है।

मसलन, सौरमंडल में ग्रहों के साथ सूर्य की अंतर्क्रिया का अवश्यंभावी परिणाम सूर्य के गिर्द उनका घूमना होता है। जैव और अजैव प्रकृति के बीच अंतर्क्रिया केवल पौधों व जानवरों को ही नहीं, बल्कि उनके पर्यावरण को भी बदल देती है। भौतिक उत्पादन के दौरान मनुष्य प्रकृति के साथ अंतर्क्रिया करते है और इस प्रकार प्रकृति को तथा स्वयं को भी परिवर्तित करते हैं।

वस्तुगत जगत की चीज़ें और घटनाएं केवल अंतर्क्रिया ही नहीं करती, बल्कि परस्पर आश्रित ( mutually dependent ) भी होती हैं। वस्तुओं तथा घटनाओं के ऐसे अन्योन्याश्रय ( interdependence ) का मतलब यह है कि विकास के दौरान वे एक दूसरे को प्रभावित करती हैं, एक दूसरे का निर्धारण करती हैं तथा परस्पर निर्भर होती हैं।

परस्पर निर्भरता प्रकृति, सामाजिक जीवन तथा मानव चेतना में सर्वत्र पाई जाती है। उदाहरणार्थ, आधुनिक भौतिकी ने इलेक्ट्रोन के द्रव्यमान तथा उसकी गति के वेग की परस्पर निर्भरता को साबित कर दिया है। सामाजिक जीवन में, आपसी निर्भरता के भौतिक सामाजिक संबंध व्यक्तियों के मानस में परावर्तित ( reflect ) होते हैं, उनकी विचार-धारा को तद्‍अनुसार अनुकूलित ( conditioned ) बनाते हैं, जो अपनी बारी में ख़ुद सक्रिय प्रतिप्रभाव डालती है। मानव चेतना में संवेदनों ( sensations ) और संकल्पनाओं ( concepts ) के बीच घनिष्ठ अंतर्निर्भरता होती है।

सार्विक संपर्क तथा अंतर्क्रिया के सिद्धांत का, विश्व-दृष्टिकोण ( word-outlook ) यानि मनुष्य के दुनिया को देखने-समझने के नज़रिए के संबंध में बड़ा महत्त्व है। यह विश्व की भौतिक एकता ( materialistic unity ) की गहनतर समझ प्रदान करता है, इसके जरिए हम वस्तुओं तथा घटनाओं को उनके आपसी अंतर्संबंधों, निर्भरताओं और परस्पर अंतर्क्रियाओं के साथ देखने में सक्षम बनते हैं, उनको उनकी वास्तविकताओं ( actualities ) के साथ बेहतरी से जानने-समझने के योग्य बनते हैं।

सार्विक संपर्क और अंतर्क्रिया अपने रूपों में असीम विविधतापूर्ण है। वस्तुगत जगत की एकता और अखंडता ( integrity ) तथा इस जगत की वस्तुओं और घटनाओं की विविधता के द्वारा ही संपर्क के इन रूपों की प्रकृति और विविधता ( diversity ) का निर्धारण होता है। भौतिक जगत की प्रत्येक अलग-अलग वस्तु या घटना के अनेकानेक विविध पहलू तथा गुण होते हैं और फलतः, अन्य वस्तुओं और घटनाओं के साथ तथा शेष सारे विश्व के साथ अनगिनत अंतर्संबंध भी होते हैं। ये संबंध सतत गतिमान, परिवर्तनशील व विकासमान हैं। विकास के दौरान एक दूसरे के साथ तथा शेष विश्व के साथ उनके अंतर्संबंध लगातार बदलते रहते हैं। फलतः, वास्तविकता के सार्विक संपर्कों के रूप अत्यंत गतिशील ( dynamic ) भी हैं और जटिल ( complex ) व विविधतापूर्ण भी

द्वंद्ववाद के सारे प्रवर्ग ( categories ) और नियम ( laws ) किसी ना किसी प्रकार से इस विश्व की वास्तविकता के संपर्कों और संबंधों को अभिव्यक्त करते हैं। इन संपर्कों के विविध रूप अलग-थलग नहीं, बल्कि एक अखंड प्रणाली हैं। अंतर्क्रिया के रूप भी इतने ही विविध हैं। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण यांत्रिक, भौतिक, जैविक और सामाजिक रूप हैं। इनमें से प्रत्येक में अनगिनत अंतर्क्रियाएं शामिल होती हैं और साथ ही साथ वे अन्य रूपों के साथ जटिल और विविधतापूर्ण अंतर्क्रियाएं करते हैं।

सार्विक संपर्क और अंतर्क्रिया की संकल्पना मानव संज्ञान ( cognition ) और व्यावहारिक कार्यकलाप के लिए असाधारण महत्त्व की है। वास्तव में, मानव द्वारा विश्व के संज्ञान का सारा इतिहास, इन्हीं सार्विक संपर्को और अंतर्क्रियाओं के असीम विविधतापूर्ण रूपों के रहस्यों में गहरे पैठने का, उनके व्यावहारिक उपयोग का ही इतिहास है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय

1 टिप्पणियां:

S.kejriwal ने कहा…

yaha gayan ko behetar wa waysthit disa marag hai

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