शनिवार, 19 अप्रैल 2014

विरोधियों की एकता तथा संघर्ष के नियम का सार

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने द्वंद्ववाद के नियमों के अंतर्गत अंतर्विरोधों के अन्य रूपों पर चर्चा की थी, इस बार हम विरोधियों की एकता तथा संघर्ष के नियम का सार प्रस्तुत करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



विरोधियों की एकता तथा संघर्ष के नियम का सार

अभी तक जो कुछ बताया गया है उसका समाहार करने के लिए हम द्वंद्ववाद ( dialectics ) के एक सबसे महत्त्वपूर्ण नियम, विरोधियों की एकता और संघर्ष के नियम ( law of unity and struggle of opposites ) को, निम्न सार के रूप में निरूपित कर सकते हैं:

( १ ) प्रकृति, समाज तथा चिंतन की किसी भी घटना में विरोधी ( opposing ) पहलू, अनुगुण, लक्षण, उपप्रणालियां या तत्व होते हैं, जो एक दूसरे से अनिवार्यतः जुड़े होते हैं या अंतर्क्रियाशील होते हैं, यानि वे एक एकत्व ( unity ) होते हैं।

( २ ) एकत्व की रचना करने वाले विरोधियों ( opposites ) के बीच द्वंद्वात्मक अंतर्विरोध ( dialectical contradiction ) का संबंध होता है।

( ३ ) मुख्य आंतरिक अंतर्विरोधों ( internal contradiction ) की उत्पत्ति, वृद्धि और समाधान सारी गति के और विशेषतः विकास के स्रोत ( source of development ) हैं। अंतर्विरोधों का समाधान विकास का निर्णायक क्षण, विकास का मुख्य कारण होता है।

( ४ ) विकास के दौरान कुछ विरोधियों ( प्रतिपक्षों ) का अन्य में द्वंद्वात्मक संक्रमण ( transition ) होता है, और विरोधियों की टक्कर ( clash ), अंतर्क्रिया ( interaction ) व अंतर्वेधन ( interpenetration ) होता है।

( ५ ) नयी अविपर्येय ( irreversible ) घटनाएं, प्रक्रियाएं, अनुगुण या लक्षण, आदि उत्पन्न होते हैं, जो पहले विद्यमान नहीं थे और वे विरोधियों के संघर्ष ( struggle ) के द्वारा, उनके अंतर्संपरिवर्तन ( interconversion ) व अंतर्वेधन तथा एक दूसरे में संक्रमण के द्वारा तथा अंतर्विरोधों के समाधान ( solution ) के ज़रिये उत्पन्न होते हैं।

इस प्रकार, विरोधियों की एकता और संघर्ष के नियम का सार्विक स्वरूप ( universal character ) है और इसकी समझ का विश्वदृष्टिकोणीय ( world-outlook ), विधितंत्रीय ( methodological ) तथा वैचारिक ( ideological ) महत्त्व बहुत अधिक है। एक वस्तु या घटना के विश्लेषण में उसके अंतर्विरोधों से शुरुआत की जानी चाहिये और उसके विरोधी पक्षों, गुणों तथा प्रवृत्तियों की एकता व संघर्ष को समझना चाहिए और इस तरह से उनके अंतर्संबंधों ( interrelations ) को स्पष्ट करना चाहिए। वस्तुओं और घटनाओं की ऐसी जांच ही उनके सार तक पहुंचने का एकमात्र तरीका है।

विचाराधीन घटनाओं में अंतर्भूत ( immanent ) तथा बुनियादी ( basic ) अंतर्विरोधों का पता लगाने से उन घटनाओं के विकास के प्रेरक बलों का ही नहीं, बल्कि उनके विकास के नियमों का ज्ञान प्राप्त करने में भी मदद मिलती है। चूंकि अंतर्विरोध तथा उनके समाधान के तरीक़े विविधतापूर्ण हैं, इसलिए व्यवहार में उत्पन्न होनेवाले अंतर्विरोधों की विशिष्टताओं को पहचानना और प्रदत्त दशाओं में उनके समाधान के इष्टतम ( optimal ) तरीक़ों का कुशलता से पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।

समय

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