शनिवार, 30 जुलाई 2016

वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - २

हे मानवश्रेष्ठों,

समाज और प्रकृति के बीच की अंतर्क्रिया, संबंधों को समझने की कोशिशों के लिए यहां पर प्रकृति और समाज पर एक छोटी श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और समाज की संरचना के अंतर्गत उसके परिणामों पर चर्चा  की थी, इस बार हम उसी चर्चा को आगे बढ़ाएंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति के युग में प्रकृति और समाज
वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति और उसके परिणाम - २
( scientific and technological progress and its consequences - 2 )

(२) मनुष्यजाति की एक सबसे महत्वपूर्ण भूमंडलीय समस्या है ऊर्जा के नये स्रोतों की रचना और उपयोग। अभी तक ऊर्जा तकनीक की प्रमुख उपलब्धि परमणु ऊर्जा को उपयोग में लाना रही है, परंतु इसमें कई ख़तरे और अंतर्विरोध निहित हैं। एक तरफ़, परमाणु ऊर्जा सस्ती बिजली हासिल करना और क़ुदरती ईंधन की बचत करना संभव बनाती है। दूसरी तरफ़, यह लगातार रेडियो सक्रिय प्रदूषण का ख़तरा पैदा कर रही है। किंतु इसमें कोई शक नहीं कि सबसे बड़ा ख़तरा नाभिकीय अस्त्रों के निर्माण में निहित है।

आधुनिक वैज्ञानिक खोजें यह उम्मीद बंधाती हैं कि निकट भविष्य में नियंत्रित तापनाभिकीय क्रिया उपलब्ध कर ली जायेगी, जिससे लगभग असीमित ऊर्जा संसाधनों की प्राप्ति होने की संभावना है। इससे अनेक खनिजों का संरक्षण करना तथा तेल, कोयला व प्राकृतिक गैस के उपयोग को केवल रासायनिक उद्योग तक ही सीमित रखना संभव हो जायेगा।

(३) आधुनिक रासायनिक उद्योग ऐसी नयी कृत्रिम सामग्री हासिल करना संभव बना रहा है, जो प्रकृति में नहीं पाये जाते। इनसे प्राकृतिक चमड़े, लकड़ी, रबर, ऊन तथा कुछ धातुओं, आदि को प्रतिस्थापित किया जा रहा है। रसायन के अनुप्रयोग ( application ) से अत्यंत कारगर उर्वरकों, दवाओं और कीटनाशी पदार्थों का उत्पादन हो रहा है। इन सबसे प्राकृतिक संपदा के बेहतर उपयोग को बढ़ावा मिल रहा है, कृषि की उत्पादकता बढ़ रही है और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार व उम्र में वृद्धि हो रही है। परंतु साथ ही रासायनिक अपशिष्ट ( waste ) वायुमंडल, जल, मिट्टी, सागर-तल को दूषित भी कर रहे हैं। सारे संसार में पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम पर विराट संसाधन लगाये जा रहे हैं।

(४) वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति अपशिष्टरहित तकनीकी की रचना करना संभव बना रही है। आधुनिक उद्योग और कृषि विज्ञान की उपलब्धियों के उपयोग से तकनीकी प्रक्रिया को इस तरह से व्यवस्थित कर सकते हैं कि जिससे उत्पादन जन्य अपशिष्ट वायुमंडल को दूषित करने के बजाय द्वितीयक कच्चे माल के रूप में फिर से उत्पादन चक्र में प्रविष्ट हो जाएंगे। जैव तकनीकी, रसायन का उपयोग तथा अपशिष्टरहित तकनीकी अनेक प्रकृति संरक्षण विधियों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है और साथ ही साथ मनुष्य के कृत्रिम निवास स्थल में उल्लेखनीय सुधार करने में मदद कर रही है।



इस बार इतना ही।
जाहिर है, एक वस्तुपरक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।
शुक्रिया।
समय अविराम

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