शनिवार, 1 जनवरी 2011

बच्चों की आरंभिक क्रियाशीलता

हे मानवश्रेष्ठों,

यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने क्रियाशीलता और सक्रियता को समझने की कोशिशों की कड़ी में कौशल और उसके निर्माण की प्रक्रिया पर चर्चा की थी इस बार हम मनुष्य की सक्रियता के मुख्य प्ररूप और उनके विकास के अंतर्गत सक्रियता के निर्माण पर चर्चा करेंगे।

यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।



मनुष्य की सक्रियता के मुख्य प्ररूप और उनका विकास

सचेतन क्रियाशीलता के रूप में मनुष्य की सक्रियता का निर्माण और विकास उसकी चेतना के निर्माण और विकास के समानांतर होता है। वह चेतना के निर्माण तथा विकास के लिए आधार और उसकी सारवस्तु के स्रोत का काम भी करती है।

सक्रियता का निर्माण
बच्चों की आरंभिक क्रियाशीलता
 
व्यक्ति की सक्रियता अन्य व्यक्तियों के साथ उसके संबंधों की पद्धति से अभिन्न रूप से जुड़ी होती है। अन्य लोगों की सहायता और सहभागिता उसके अनिवार्य अंग हैं और इस कारण वह संयुक्त सक्रियता का रूप ग्रहण कर लेती है। उसके परिणाम परिवेशी विश्व पर और अन्य लोगों पर के जीवन पर एक निश्चित प्रभाव डालते हैं। इस कारण सक्रियता हमेशा अन्य चीज़ों के प्रति ही नहीं, अन्य लोगों के प्रति भी उसके रवैये की परिचायक होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, सक्रियता मनुष्य के व्यक्तित्व को उघाड़ती भी है और ढ़ालती भी है

संयुक्त सुसंगठित समूह की सोद्देश्य, सामाजिक रूप से उपयोगी सक्रियता में भाग लेने से व्यक्ति में सामूहिक भावना, आत्मानुशासन और अपने हितों को समाज के हितों से जोड़ने की योग्यता का संवर्धन होता है। वस्तुगत शिक्षा मनोविज्ञान में सक्रियता को व्यक्तित्व के निर्माण का एक प्रमुख कारक मानते हुए उसकी संकल्पना को अपने शैक्षिक कार्य के सिद्धांत तथा व्यवहार का आधार बनाया जाता है। इन सिद्धांतों के अनुसार बच्चों की सक्रियता क्रियाकलापों का गठन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि वे महत्त्वपूर्ण मानव गुणों ( संकल्प, अनुशासन, ईमानदारी, उत्तरदायित्व भावना, लक्ष्यनिष्ठा, आदि ) के विकास में सहायक सभी तरह की गतिविधियों में भाग ले सकें।

किन्हीं खास परिस्थितियों में किन्हीं खास कार्यों को करने की आवश्यकता ऐसी आदतों को जन्म देती है कि जो व्यक्तित्व के गुण बन जाती हैं। विभिन्न प्रकार की सक्रियता में मनुष्य का भाग लेना आंतरिक विकास की एक दीर्घ तथा जटिल प्रक्रिया का परिणाम होता है। बच्चे की क्रियाशीलता अभिभावकों, अध्यापकों और प्रशिक्षकों के दीर्घ प्रयास के फलस्वरूप ही, सचेतन सोद्देश्य सक्रियता का रूप ग्रहण करती है।

आरंभ में यह क्रियाशीलता अपने को आवेगी व्यवहार में प्रकट करती है। नवजात शिशु की प्रतिक्रियाएं केवल कुछ सहज अनुक्रियाओं तक ही सीमित रहती हैं, जिनका स्वरूप प्रतिरक्षात्मक ( तेज़ उजाले या ऊंची आवाज़ के प्रभाव से आंख की पुतली का सिकुड़ना, दर्द होने पर रोना तथा हाथ-पैर पटकना ), आहारान्वेषणात्मक ( चूसने का प्रतिवर्त ), लैबिरिंथी ( हिचकोले दिये जाने पर शांत हो जाना ) और कुछ बाद में अभिविन्यास तथा अन्वेषण से संबंधित ( उत्तेजक की ओर सिर घुमाना, चलती हुई वस्तु पर आंखें टिकाये रखना, आदि ) होता है।

ग्यारहवें-बारहवें दिन से शिशु के पहले अनुकूलित प्रतिवर्त बनने शुरू हो जाते हैं। वे अन्वेषणात्मक व्यवहार ( वस्तुओं को पकड़ना, जांचना, उलटना-पलटना ) के विकास का आधार बनते हैं, जिसकी शुरूआत बच्चे के जीवन के पहले वर्ष में ही हो जाती है और जो उसे बाह्य वस्तुओं के गुणों के बारे में जानकारी संचित करने और गतियों का संतुलन करना सीखने में मदद करता है। दूसरे वर्ष से बच्चा सिखाने के प्रभाव से और अनुकरण की अपनी सहजवृत्ति के भरोसे व्यवहारिक व्यवहार विकसित करना शुरू करता है और विभिन्न वस्तुओं को इस्तेमाल करने और सामाजिक व्यवहार में उनका अर्थ खोजने के मानवीय तरीक़े सीखता है ( जैसे बिस्तर पर सोना, स्टूल पर बैठना, गेंद से खेलना, पेंसिल से आकृतियां बनाना)।

क्रियाशीलता के इन रूपों की एकता से बच्चा संप्रेषणात्मक व्यवहार विकसित करता है, जो उसकी आवश्यकताओं और इच्छाओं की तुष्टि का मुख्य ज़रिया है, और समाज द्वारा की जानेवाली अपेक्षाओं की जानकारी पाता है तथा अपने लिए सूचना के विभिन्न स्रोतों के द्वार खोलता है।

आरंभ में यह व्यवहार भाषापूर्व रूपों में साकार बनता है ( अस्पष्ट आवाज़ें, चीखें, अंगसंचालन द्वारा संकेत )। सातवें या आठवें महिने से बच्चा पहले निष्क्रिय तौर पर और फिर सक्रिय रूप से मानव-संप्रेषण, अन्योन्यक्रिया तथा सूचना-विनिमय के मुख्य साधन - भाषाई व्यवहार - को सीखना शुरू कर देता है। बोलना सीखने से बिंबों को वस्तुओं तथा क्रियाओं से अलग करने और विभिन्न अर्थों को व्यवहार-नियंत्रण के उपकरणों के नाते अलग, सुनिर्धारित तथा उपयोग करने के लिए आवश्यक पूर्वाधार तैयार होता है।



इस बार इतना ही। अगली बार खेल और सक्रियता में उनकी भूमिका पर बातचीत होगी।

जाहिर है, एक वस्तुपरक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए कई संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, हमें एक बेहतर मनुष्य बनाने में हमारी मदद कर सकता है।

शुक्रिया।

समय

3 टिप्पणियां:

Dorothy ने कहा…

गहन विवेचनात्मक संग्रहणीय आलेख के लिए आभार.

अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.

आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.

निर्मला कपिला ने कहा…

ग्यानवर्द्धक पोस्ट। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

पहली बार देखा आपका ब्लॉग.. अपने आप में एक किताब है.. बधाई आपको..
विनायक सेन चिट्ठाचर्चा पर काहे बोलतो?

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